मास्टर साहब
चंद्रगुप्त विद्यालंकार
आपका
जन्म पंजाब के एक गाँव कोटअदूदू में हुआ। आपकी शिक्षा गुरुकुल कांगडी, हरिद्वांर में हुई । आपके कई कहानी-संग्रह प्रकाशित
हो चुके हैं। कहानी-लेखक के अतिरिक्त आप सफल आलोचक तथा
पत्रकार भी है । सजीव चित्रण, रोचक शैली तथा प्रवाहपूर्ण
भाषा के कारण आपकी कहानियाँ मर्मस्पर्शी हॊती है, जिन्हें
पढकर पाठक तन्मय हो जाताहै। आपने गहन विषयों को सरल शैली और माध्यम द्वारा
प्रस्तुत किया है। मनुष्य की संवेदनाओं को पकडने और प्रतिफलित करने के लिए आपकी
कहानियाँ बहुत गहरे उतरती है।
सारांश:
बूढे
मास्टर रामरतन अजीब थकान की वजह से खेतों के बीचोंबीच बने छॊटे से चबूतरे पर बिछी
चटाई पर लेट गए। सनू १९४७ के अगस्त मास की एक चाँदनी रात अभी अभी शुरू हुई थी।
पिछले दिनों बहुत गर्मी रही थी- मौसम की भी, दिमाग की भी। मास्टर साहब का यह कस्बा जैसे दुनिया के एक किनारे पर है।
नजदीक से नजदीक का रेलवे स्टेशन वहाँ से तीन मील की दूरी पर है । पिछले कितने ही
दिनों से अमंगलपूर्ण खबरें दिन-रात सुनने में आ रही है कि
मुसलमान हिन्दुओं और सिक्खॊं के खून के प्यासे बन गए हैं। दुनिया तबाह हो रही है,
घर-बार लूटे जा रहे हैं । सब तरफ मार-काट जारी है । मास्टर साहब के गांव में अभी तक अमन-चैन
जारी है। मास्टर साहब अपनी जिंदगी के ६५ साल यहां बिताया है और उनकी शागिर्दों की
संख्या हजारों में है। हिन्दू, सिक्ख, मुसलमान
सभी कॊ उन्होंने दिलचस्पी से पढाया है। कॊई एकाएक उनका दुश्मन कैसे और क्यों बन
जाएगा। फिर उन जैसा फारसीदां पाकिस्तान वालों का कोई दुश्मन कैसे हो जाएगा?
। पाकिस्तान एक दिन बनना ही था, वह मास्टर
साहब के जिंदगी में ही बन गया । लेटे-लेटे मास्टर साहब को
नींद आ गई। आँखें जब खुली तो सहसा उन्होंने पाया कि वातावरन अभी तक एकदम नीरव है।
वे उठे और तेजी से गाँव की तरफ चल पडे। एक गहरी चुप्पी पुकारकर उन्हें चेतावनी दे
रही थी कि महाकाल की बेला सिर पर है। वे तेजी से अपने गांव की ओर बढते गए। दौडते
दौडते गाँव की सीमा में आ पहुँचे। सामने मिले पडोसी नत्थुसिंह से पूछा कि मेरे घर
का क्या हाल है। वह अपनी असमर्थता को सिर हिलाकर जता दिया । दूर पर जल रहे मकानों
की ज्वालाएं एक भयोत्पादक आवाज उत्पन्न कर रही थी। क्षण-भर
बाद मास्टर साहब ने अपनी लाडली पोती निम्मो को आवाज दी, कोई
जवाब नहीं मिला । मास्टर साहब ने पुकारा-निम्मो की दीदी,
बेटा सत्ती, बेटा प्रकाश बेटी सत्यवती कोई
जवाब नहीं आया !
मास्टर
साहब धीरे-धीरे घर के भीतर प्रविश्ट हुए। तुलसी के झाड के
नीचे नन्हें सत्ती और नन्हे प्रकाश के क्षत-विक्षत निष्प्राण
देह पडे मिले। चबुतरे पर माँ-बेटी, मास्टर
साहब की जीवन संगिनी अपनी बडी लडकी से चिपककर पडी है-निप्प्राण-निस्पन्द। पर उनकी लाडली पोती निम्मो- जिसकी
पन्द्रहवी वर्षगांठ अभी पाँच दिन पहले हुआ- कहीं दिखाई नहीं
दी। बाद में उन्हें पता चला कि चांद डूबने से घण्टा- भर पहले
मुसलमानों की एक बहुत बडी संख्या ने गाँव के उस भाग पर हमला कर दिया, जिसमें हिन्दु और सिक्ख रहते थे। यह हमला इतना अचानक और इतने जोर से हुआ
कि उसका मुकाबला किया ही नहीं जा सका । भयंकर मारकाट और लूटमार के बाद गुण्डे लोग
गाडियों में भरकर लूटा हुआ माल अपने साथ लेते गए, साथ ही
गाँव की बीसों जवान लडकियों को भी अपने साथ ले गए । वे लोग बच गए जो रात की वक्त
घरों से भागकर खेतों में जा छिपे या दूर भाग गए । वे सब लोग अब एक जगह इकट्ठे कर
लिए गए, और उन्हें नए हिन्दुस्तान में भेजने का इन्तजाम किया
जा रहा है। अपनी जीवन-संगिनी, बडी
विधवा पुत्री और दोनों पोतों को एकसाथ खोकर पागल सा हो गये थे। बूढे मास्टर ने
निश्चय किया कि वे किसी तरह निम्मो की तलाश करेंगे, किसी-न-किसी तरह उसके पास पहुँच जाएँगे और साफ था कि वह
उसे बचा नहीं सकेंगे, तब निम्मो के पास पहुँचकर अपने हाथों
अपनी पोती की हत्या करके खुद भी मर माएँगे।
गाँव
छॊडने के तीन दिन के भीतर मास्टर रामरतन का कायाक्ल्प हो गया, किसी अपरिचित के लिए यह पहचान सकना आसान नहीं था कि वह हिन्दू है या
मुसलमान, वह एक फकीर की तरह दिख रहे थे। आसपास की कितनी
बस्तियाँ और गाँवों को तलाश ने के बाद मालुम हुआ कि गाँव पर आक्रमण करने वालों का
मुखिया एक पूरे गाँव का जमींदार गुलाम रसूल था और यह भी कि वह कितनी ही हिन्दू
लडकियों को अपने साथ घर ले गया हैं।
गुलाम
रसूल का घर तलाश करने में मास्टर साहब को देर नहीं लगी । उन्होंने मकान पर दस्तक
दी एक बच्चे ने आकर पूछा-क्या चाहिए? एक
महान हत्यारे के घर उनका स्वागत एक बच्चा करेगा, इसकी उम्मीद
उन्हें कदापि नहीं थी । बच्चा अंदर जाकर कहा- कोई फकीर है
अम्मी! अब्बा को पूछता है। इस बीच उन्होंने उपाय सोच लिया,
नूरपूर के जमींदार के नाम पर, जो लडकियाँ
चाहता है और अच्छा कीमत भी देने को तैय्यार है, इस बहाने
लडकियों को देखने की इच्छा प्रकट कर सकते है। अगर उनकी चाल असफल हो गई तो वे अंदर
छिपे तेज चाकू से रसूल पर हमला करेंगे, नहीं तो इसी चाकू से
एक हत्या निम्मो का और उसके बाद आत्महत्या।
सहसा
एक अप्रत्यशिता घटना घटित हो गई । जो छोटा बच्चा पहले दरवाजा खोला था, उसी हमीद का हाथ पकडकर निम्मो दरवाजे पर आ गई, मास्टर
साहब चीख उठे-निम्मो! और १५ वर्ष की
पोती को गॊद में उठा लिया । भावों का पहला तूफान निकल जाने के बाद उन्होंने पाया
कि बच्चा हमीद निम्मो का हाथ ही नहीं छॊडना चाहता। अब भी उसका दाहिना हाथ निम्मो
के बायें हाथ को पकडे हुए है । सहसा गली में शॊर मच गया “काफिर, काफिर” मास्टर साहब जेब से चाकू निकलने से पहले दो जवान मुसलमानों ने
उन्हें जकडकर पकड लिया उसी वक्त गालियाँ बकते हुए गुलाम रसूल ने अपनी बैठक में
प्रवेश किया । मास्टर पर निगाह पडते ही वह चिल्ला उठा ......ओह मास्टर साहब ! आप
यहाँ कैसे? मानवीय सहानुभूति का हल्का सा आसरा पाकर बूढे
मास्टर के हृदय की संपूर्ण व्यथा आँखों की राह बह चली कुछ क्षण बाद रसूल ने मास्टर
को अपनी छाती से लगा लिया । जब पता चला कि निम्मो उनकी पोती है तो, तभी चार दिनों में उसका बेटा हमीद इसे अपनी सगी बहन समझने लगा है। और
मास्टर साहब से कहा-निम्मो के साथ मेरी हिफाजत में आप चाहे जहाँ भी चले जा सकोग ।
सांप्रदायिक दंगों के पाशविक वातावरण में इन्सान एक दूसरे के खून का
प्यासा हो गया है। ऎसे समय अधिकतर इन्सान सांप्रदायिक विष को पीकर मानवता की रक्षा
में अपना सहयोग देते है । अक्सर देखा जाय तो यह भावना हमेशा अन्तर्धारा के रुप में
विद्यमान रहकर अपना असर दिखाती हैं।
डॉ सुकन्या मार्टिस
पूर्णप्रज्ञ कालेज
उडुपि
I. एक शब्द या वाक्य में प्रश्न (आप उत्तर वाक्यों में
लिखिए)
1. मास्टर साहब का पूरा नाम क्या है?- रामरतन
2. मास्टर साहब कहानी किस समय की है- आगस्त १९४७
3. मास्टर साहब की पोती कौन है- निर्मला
4. निर्मल को प्यार से क्या बुलाते है- निम्मो।
5. मास्टर साहब के बेटी और पोतों का नाम क्या हैं?- बेटी-सत्यवती पोता-सत्ती और प्रकाश
6. गुलम रसूल के बेटे का नाम क्या हैं- हमीद
7. मास्टर साहब के गाँव पर आक्रमण करनेवालों का मुखिया कौन् है?- जमिंदार गुलाम रसूल
8. मास्टर साहब का पडोसी कौन हैं?- नत्थूसिंह
9. निम्मो कितने साल की हैं? - १५
10. मास्टर साहब यह कहानी किस पर आधारित हैं?-सांप्रदायिक
दंगे और अंतर्निहित मानवता पर ।
II. टिप्पणी लिखिए ।
१. मास्टर साहब २. गुलाम रसूल
३. हमीद ४. सांप्रदायिक दंगे
III. “मास्टर साहब कहानी सांप्रदायिक दंगे और उसमें अंतर्निहित मानवता का झलक
प्रस्तुत करता है- इस उक्ति पर चर्चा कीजिए
अथवा
“मास्टर साहब” कहानी का सार लिखकर उसकी
विशेषता पर प्रकाश डालिए ।
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